हाल ही में संपन्न हुए टोक्यो पैरालंपिक 2020 में भारतीय खिलाड़ियों ने शानदार प्रदर्शन कर इतिहास रच दिया था. टोक्यो में भारत ने 5 स्वर्ण, 8 रजत और 6 कांस्य पदक जीतकर 24वां स्थान हासिल किया. पैरालंपिक खेलों के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ. जब भारत की पदक संख्या दोहरे अंकों में पहुंची हो. इससे पहले भारत का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन रियो पैरालंपिक (2016) में रहा था, जहां उसने 2 स्वर्ण समेत 4 पदक जीते थे.
पैरालम्पिक्स की शुरूआत (स्टोक मंडेविल गेम्स)
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान एक बड़ी संख्या में सैनिक दिव्यांग हो गए. ऐसे में चैलेंज था कि ऐसा क्या किया जाए कि उनका जीवन पटरी पर लौट सके. इसी दिशा मे साल 1944 में ब्रिटिश सरकार के अनुरोध पर स्टोक मानडेविल अस्पताल के नियोरोलोजिस्ट सर गुडविंग गुट्टमान ने एक जगह सुनिश्चित की, जहां इन घायल जवानों की देखभाल शुरु हुई. बाद में उन्होंने सैनिकों के रिहेबिलेशन में खेल की व्यवस्था की.
29 जुलाई 1948 लंदन में ओलंपिक खेलों के उद्घाटन समारोह के दिन, डॉ. गुट्टमैन ने व्हीलचेयर एथलीटों के लिए पहली प्रतियोगिता का आयोजन किया, जिसे उन्होंने स्टोक मैंडविल खेलों का नाम दिया, जो पैरालंपिक इतिहास में एक मील का पत्थर है. इनमें 16 घायल सैनिक और महिलाएं शामिल थीं जिन्होंने तीरंदाजी में भाग लिया था. जिसके बाद 1952 में, डच पूर्व सैनिक आंदोलन में शामिल हुए और अंतर्राष्ट्रीय स्टोक मैंडविल खेलों की स्थापना की गई.
पैरालिंपिक में भारत की शुरुआत
भारत ने 1968 में इजरायल के तेल अवीव में पैरालिंपिक में अपनी पहली उपस्थिति दर्ज की. भारतीय प्रतिनिधि मंडल में 10 एथलीटों को भेजा गया जिनमें आठ पुरुष और दो महिलाएं शामिल थीं. हालांकि, भारत इस आयोजन से खाली हाथ लौटा, लेकिन बड़े मंच पर प्रदर्शन करना भारत के पैरा-एथलीटों के लिए पहला अनुभव था.
चार साल बाद 1972 में जर्मनी के हीडलबर्ग गेम्स में भारत ने पैरालिंपिक में अपना पहला पदक जीता. मुरलीकांत पेटकर ने 50 मीटर फ्रीस्टाइल तैराकी में स्वर्ण पदक हासिल करते हुए 37.331 सेकंड का विश्व रिकॉर्ड भी बनाया, आयोजन में भाग लेने वाले 42 देशों की तालिका में भारत एक पदक के साथ 24वें स्थान पर रहा. 1972 में पहला स्वर्ण पदक जीतकर भारत ने पैरालिंपिक में पहला धमाका किया.
2012 में लंदन में भारत के HN गिरीशा ने पुरुषों की ऊंची कूद F42 श्रेणी में रजत पदक जीता। इस संस्करण में भारत एकमात्र पदक ही हासिल कर पाया था. 2016 में भारत ने रियो गेम्स में चार पदक के साथ अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया. एथलेटिक्स में मिले ये पदक भारतीय पैरालिम्पियन को मजबूत करने के लिए जरूरी थे. मरियप्पन थंगावेलु और देवेंद्र झाझरिया ने क्रमश ऊंची कूद F42 और जेवलिन F46 में एक-एक स्वर्ण पदक जीता, जबकि दीपा मलिक ने भी शॉट पुट में रजत पदक पर कब्जा जमाया. वरुण सिंह भाटी ने ऊंची कूद F42श्रेणी में कांस्य पदक अपने नाम किया.
टोक्यो में खेले जा रहे पैरालंपिक खेलों में 30 अगस्त, 2021 को राजस्थान के खिलाड़ियों ने प्रदेश और देश को स्वर्णिम सफलता दिलाई. शूटिंग में अवनि लाखेरा ने गोल्ड मेडल, भालाफेंक (javelin throw) में देवेंद्र झाझरिया ने सिल्वर मेडल और सुंदर सिंह गुर्जर ने ब्रॉन्ज मेडल जीता. जयपुर निवासी अवनि लाखेरा ने महिलाओं के 10 मीटर एयर राइफल के क्लास एसएच-1 के फाइनल में 249 पॉइंट्स स्कोर कर गोल्ड मेडल हासिल किया. ऐसा करने वाली वे पहली भारतीय महिला एथलीट हैं. भालाफेंक प्रतियोगिता में राजस्थान के देवेंद्र झाझरिया ने 64.35 मीटर दूर भाला फेंक कर सिल्वर और सुंदर सिंह गुर्जर ने 64.1 मीटर दूर भाला फेंक कर ब्रॉन्ज मेडल जीता. उल्लेखनीय है कि झाझरिया इससे पूर्व पैरालंपिक में दो बार गोल्ड मेडल जीत चुके हैं.